सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मई, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फिर बदलाव आएगा !

तक़दीर बनाने की हिम्मत रखने वाले,  अब जिंदगी की तस्वीर देख रोते है! वह समाज आगे कैसे बढे?  जहाँ लोग जागते हुए सोते है! इलज़ाम लगाकर काम ख़तम समझने वालों,  तुम्हारा हश्र भी वही होगा, बस फर्क इतना होगा की,  इलज़ाम तब कोई और लगा रहा होगा! जागने को भोर का इंतज़ार करने वालो,  इंतज़ार करते रहो, की  कोई सुभाष, कोई भगत,  कोई आज़ाद, फिर खड़ा होगा! तब तक ना जाने, कितने  माँ बहनों की लाशों का बेड़ा होगा! इंतज़ार से  न तक़दीर बदलती हे न ही तदबीर, कुछ बदलना हे तो अपना सोच बदलो  और बदलो अपना तरकीब! एक सरदार उठा, एक गाँधी चला,  तब कारवां बना था! भगत, राजगुरु, ये जमीं जाने  कितनो की खून से सना था!  हौसला रखो, खुद से भी लड़ो,  फिर इंक़लाब आएगा! फिर बदलाव आएगा ! खुद आगे बढ़ो, खुद की लिए लड़ो,  फिर सैलाब आएगा! फिर बदलाव आएगा ! Tumblr पे पढ़िए: https://bit.ly/3xIVQn0 #poetry #poems #poet #shayari

माँ तो माँ ही होती है।

 सुबह सुबह कुछ अवसाद-सा था, कुछ सुस्त था तन। था कुछ उदास-सा मन, सोच रहा था कुछ बेखयाली में, जाने कहाँ था मगन! फ़ोन की घंटी बजी, लगा, माँ का कॉल आया होगा। फ़ोन उठाते ही महसूस हुआ, मेरी खामोशी सुन ली थी उसने, फिर प्यारी-सी आवाज़ आयी, और हाल चाल पूछने लगी। सवाल अलग-अलग थे, पर जवाब एक ही सुनना चाहती थी! जैसे भनक लग गयी थी उसे मेरे परेशानियों की! और पक्का करना चाहती थी, की बेटा सही सलामत है। में कहता रहा, में ठीक हूँ, उसके हाल चाल पूछना चाहा, पर सवाल उसके और मेरा जवाब, ख़त्म ही न हो रहा! बात करके माँ से, मन मेरा हल्का हो गया था, पर एक सवाल भगवान से था। मेरे परेशानियों का एहसास, उसको हर बार कैसे हो जाती हे! सवाल ध्यान से सुन कर, भगवान् ने भी बोला, माँ तो माँ ही होती है।

नारी: एक प्यारी सी रचना।

माँ, बहिन, पत्नी, बेटी  नारी तेरे कितने रूप! वरदान है इंसान के लिए, तेरे सारे, सारे स्वरुप।  माँ बनके जन्म दिया, दुनिया का हर कष्ट सहा, बहिन के रूप में दोस्त बनके, जाने कितने नखरे उठाये! पत्नी बनके ईश्वर बना दिया! अपनों से बढ़के प्यार किया, बनके बेटी जो जन्म लिया, हर सुख दुःख में साथ दिया।  रमणी, कामिनी, कान्ता, बनिता जाने कितने नाम हैं तेरे, स्त्री, अबला, औरत, सुंदरी,नारी, जाने क्या क्या संसार पुकारे, तुझ ही से सृष्टि, तुझ ही से विनाश, तू ही न जाने, कितनी शक्तियां तेरे पास! दुनिया में सबसे शोषित,   दलित और उपेक्षित,  फिर भी तू चाहे सबका हित । दो कुलों की तू हितैषी, इसलिए तू दुहिता ! तू शक्ति, तू नारायणी, युगे युगे नारी तू सदा बंदिता। 

इंसानी जिंदगी बड़ी बिचित्र है!

इंसानी जिंदगी बड़ी बिचित्र है, हर पल हर घडी  बदलता यहाँ चित्र है! मौके पे सोता है तक़दीर को रोता है , अक्स बदलता है ऐसे, सूरज से होड़ लगी हो जैसे ! हर स्पर्धा जितना है यहाँ, चाहे रिश्ते नाते छूट जाये! पैसे से तोलता सब कुछ, अपनों का भरोसा चाहे टूट जाये! मोह माया की पट्टी आँखों पे, इज्जत है तार तार! फिर क्यों कीचड़ में उतरे, फिर आँसुओं से धोये बार बार! कर्म को कर बुलंद इतना, खुदा भी बिन मांगे दे! हौशला हो आस्मां की बुलंदी पे, रख भरोसा इतनी खुद पे। 

सोच के देखो !

नफरत का यह सिलसिला, कब तक चलता रहेगा? धरम के नाम से हैवानियत, कब तक यूँ ही चलेगा? ताक़त के गुरुर में मज़हब को, नफरत का जरिया बना दिया,  इंसानियत रंग दी खून में, और  धरती को जंग का मैदान बना दिया! इस मारने, मिटाने के लड़ाई मेँ, कुछ, अपनों को भुला बैठे हैं! धर्म का पट्टी बांध आँखों मेँ, कुछ, रिश्तों से ही ऐंठे हैं! खून की इस होली में, अपनी चलाई गोली में, मानवता ही मर जायेगा ! किस के लिए लड़े यह जंग, सब अपने ही तो मरेंगे,  और तू ने क्या सोचा हे, तू ही जिन्दा बच जायेगा!  सोच, उसके बाद का, क्या नज़ारा होगा!  लाशें ही लाशें हर तरफ, अपनों का बिखरा होगा!  एक चंडाशोक था संसार में,  उसे तो मुक्ति मिल गयी।  मिटा दिया होगा जब संसार, तुम्हे रास्ता कौन दिखायेगा! जिन्दा रह भी गया तो सोच, अकेले धरती पे क्या करेगा! 

नेता और जनता

एक इंसान, दो रूप, एक नेता, जो माने खुद को देवता!  दूजी भोली भाली जनता, जो माने नेता देव स्वरुप! हम(जनता) मुर्ख और तुम मंत्री ! हम अकेले बेचारे और  तुम्हारे सेंकडो जंत्री तंत्री!  हम किस्मत के मारे, और  तुम किस्मत लिखने वाले संत्री! तुम्हारी प्रार्थना, सिर्फ एक दिन,  उसमे भी मैच फिक्सिंग! हम रोज़ करें पूजा, पाठ,  फिर भी रिजेक्ट एप्लीकेशन ! तुम एक बार जीतो, पांच साल का ऐश-ओ-आराम! खूब करो घोटाला, फेलाओ भ्रस्टाचार, फिर भी ताउम्र पेंशन, बिन काम ! हम एक बार जो तुम्हे जिताएं , फिर, जो हमारा जीना हाराम! गलती को रोयें, आँसुओं से धोएं, रोज़ लगाए तुम्हारा ही झंडू बाम! तुम पक्ष में हो या बिपक्ष में, काम से न कोई लेना देना! सत्ता तक पहुँचने की सीढ़ी भी हम,  उसपे तूम क़ुरबान करो हमारी ही जान! गिरगिट बदले रंग, आता मुसीबत देख, नेवले तुम, जो भटकाए सांप का केंचुल फेंक! नर तो तुच्छ है, नारायण भी सोचते होंगे, है भगवान्, क्या बनाया था मैंने, देख क्या बन गया इंसान!