एक इंसान, दो रूप,
एक नेता, जो माने खुद को देवता!
दूजी भोली भाली जनता,
जो माने नेता देव स्वरुप!
हम अकेले बेचारे और
तुम्हारे सेंकडो जंत्री तंत्री!
हम किस्मत के मारे, और
तुम किस्मत लिखने वाले संत्री!
तुम्हारी प्रार्थना, सिर्फ एक दिन,
उसमे भी मैच फिक्सिंग!
हम रोज़ करें पूजा, पाठ,
फिर भी रिजेक्ट एप्लीकेशन !
तुम एक बार जीतो,
पांच साल का ऐश-ओ-आराम!
खूब करो घोटाला, फेलाओ भ्रस्टाचार,
फिर भी ताउम्र पेंशन, बिन काम !
हम एक बार जो तुम्हे जिताएं ,
फिर, जो हमारा जीना हाराम!
गलती को रोयें, आँसुओं से धोएं,
रोज़ लगाए तुम्हारा ही झंडू बाम!
तुम पक्ष में हो या बिपक्ष में,
काम से न कोई लेना देना!
सत्ता तक पहुँचने की सीढ़ी भी हम,
उसपे तूम क़ुरबान करो हमारी ही जान!
गिरगिट बदले रंग, आता मुसीबत देख,
नेवले तुम, जो भटकाए सांप का केंचुल फेंक!
नर तो तुच्छ है, नारायण भी सोचते होंगे, है भगवान्,
क्या बनाया था मैंने, देख क्या बन गया इंसान!
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