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फिर बदलाव आएगा !

तक़दीर बनाने की हिम्मत रखने वाले, 

अब जिंदगी की तस्वीर देख रोते है!

वह समाज आगे कैसे बढे? 

जहाँ लोग जागते हुए सोते है!

इलज़ाम लगाकर काम ख़तम समझने वालों, 

तुम्हारा हश्र भी वही होगा,

बस फर्क इतना होगा की, 

इलज़ाम तब कोई और लगा रहा होगा!

जागने को भोर का इंतज़ार करने वालो, 

इंतज़ार करते रहो, की 

कोई सुभाष, कोई भगत, 

कोई आज़ाद, फिर खड़ा होगा!

तब तक ना जाने, कितने 

माँ बहनों की लाशों का बेड़ा होगा!

इंतज़ार से 

न तक़दीर बदलती हे न ही तदबीर,

कुछ बदलना हे तो अपना सोच बदलो 

और बदलो अपना तरकीब!

एक सरदार उठा, एक गाँधी चला, 

तब कारवां बना था!

भगत, राजगुरु, ये जमीं जाने 

कितनो की खून से सना था! 

हौसला रखो, खुद से भी लड़ो, 

फिर इंक़लाब आएगा!

फिर बदलाव आएगा !

खुद आगे बढ़ो, खुद की लिए लड़ो, 

फिर सैलाब आएगा!

फिर बदलाव आएगा !

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दुनिया के आईने में – एक शायर 🌙🖤

हर दिल की दास्ताँ हर शख्स को दिखानी नहीं, कुछ जज़्बात ऐसे हैं जो बयान की जानी नहीं। मत बनो वो दस्तावेज़, जिसे सब पढ़ जाएँ, जहालत के दौर में हर पन्ना फाड़ जाएँ। जब फ़ायदों की फ़सल थी, हर कोई साथ था, काम खत्म होते ही, सब चेहरे बदल गए। मोहब्बत को तौलते हैं वो बंदे ज़माने वाले, नफ़ा-नुक़सान की नज़र से देखते हैं खामोश क़िस्से। ज़ख़्म वही देते हैं, जो हँस के थाम लेते हैं हाथ, मोहब्बत की क़ीमत कभी नहीं समझ पाते साथ। रिश्तों की दुकान लगी है, इंसानियत कहीं खो गई, सुकून की तलाश में, खुद से दूर हो गया । चुप्पी को सँवारो अपनी सबसे बड़ी ताक़त बना, हर शोर में छुपा है कोई ग़म, कोई कहानी अधूरी। खुली किताब न बनो, हर किसी के लिए यहाँ, इस अंधेरे सफ़र में, सिर्फ़ वो जलते हैं जो समझें। — ✍️ आशुतोष पाणिग्राही।

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