नफरत का यह सिलसिला,
कब तक चलता रहेगा?
धरम के नाम से हैवानियत,
कब तक यूँ ही चलेगा?
ताक़त के गुरुर में मज़हब को,
नफरत का जरिया बना दिया,
इंसानियत रंग दी खून में, और
धरती को जंग का मैदान बना दिया!
इस मारने, मिटाने के लड़ाई मेँ,
कुछ, अपनों को भुला बैठे हैं!
धर्म का पट्टी बांध आँखों मेँ,
कुछ, रिश्तों से ही ऐंठे हैं!
खून की इस होली में,
अपनी चलाई गोली में,
मानवता ही मर जायेगा !
किस के लिए लड़े यह जंग,
सब अपने ही तो मरेंगे,
और तू ने क्या सोचा हे,
तू ही जिन्दा बच जायेगा!
सोच, उसके बाद का,
क्या नज़ारा होगा!
लाशें ही लाशें हर तरफ,
अपनों का बिखरा होगा!
एक चंडाशोक था संसार में,
उसे तो मुक्ति मिल गयी।
मिटा दिया होगा जब संसार,
तुम्हे रास्ता कौन दिखायेगा!
जिन्दा रह भी गया तो सोच,
अकेले धरती पे क्या करेगा!
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