भारत में गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने देश के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका प्रभाव शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकार सहित विभिन्न क्षेत्रों में महसूस किया गया है। हालाँकि, उनकी गतिविधियाँ बिना विवाद के नहीं रही हैं। इस लेख का उद्देश्य 1947 से 2014 तक भारत में गैर सरकारी संगठनों के कामकाज, विदेशी कंपनियों या एफडीआई द्वारा उनकी फंडिंग, विदेशी निवेशकों की आकांक्षाएं, लोगों और भारत सरकार पर प्रभाव, आख्यान और रूपांतरण प्रयास, कदमों का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करना है। उन्हें नियंत्रित करने और पारदर्शिता लाने और 2014 के बाद के बदलावों के लिए कदम उठाया गया।
हर दिल की दास्ताँ हर शख्स को दिखानी नहीं, कुछ जज़्बात ऐसे हैं जो बयान की जानी नहीं। मत बनो वो दस्तावेज़, जिसे सब पढ़ जाएँ, जहालत के दौर में हर पन्ना फाड़ जाएँ। जब फ़ायदों की फ़सल थी, हर कोई साथ था, काम खत्म होते ही, सब चेहरे बदल गए। मोहब्बत को तौलते हैं वो बंदे ज़माने वाले, नफ़ा-नुक़सान की नज़र से देखते हैं खामोश क़िस्से। ज़ख़्म वही देते हैं, जो हँस के थाम लेते हैं हाथ, मोहब्बत की क़ीमत कभी नहीं समझ पाते साथ। रिश्तों की दुकान लगी है, इंसानियत कहीं खो गई, सुकून की तलाश में, खुद से दूर हो गया । चुप्पी को सँवारो अपनी सबसे बड़ी ताक़त बना, हर शोर में छुपा है कोई ग़म, कोई कहानी अधूरी। खुली किताब न बनो, हर किसी के लिए यहाँ, इस अंधेरे सफ़र में, सिर्फ़ वो जलते हैं जो समझें। — ✍️ आशुतोष पाणिग्राही।


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