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सीधी सोच

खुद को हर दिन बेहतर बना रहा हूँ,

दूसरों से इसलिए लड़ता नहीं।  

दुनियाँ क्या सोचे मेरे बारे में,

फ़र्क़ उससे मुझे पड़ता नहीं। 

रिश्ते, जरूरी हैं सब मेरे लिए,

रिश्तों को अधूरा छोड़ता नहीं।  

परेशानियों के इस दौर में,

हर शख्स अपनी जंग लड़ रहा!

मदद न हो तो न सही, 

तमाशबीन बनने का शौक नहीं।  

ख़ामोशी को मेरी बेअदबी न समझो,

आदतन में यूँ ही, 

किसी को परेशान करता नहीं।  

उम्मीदें खुद से है, पर 

खुदा बनने की ख्वाइश नहीं। 

अपेक्षायें होंगी मुझसे बहुतों को,

हर आशा का किरण बन सकूँ,

यह भी तो मुमकिन नहीं !

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दुनिया के आईने में – एक शायर 🌙🖤

हर दिल की दास्ताँ हर शख्स को दिखानी नहीं, कुछ जज़्बात ऐसे हैं जो बयान की जानी नहीं। मत बनो वो दस्तावेज़, जिसे सब पढ़ जाएँ, जहालत के दौर में हर पन्ना फाड़ जाएँ। जब फ़ायदों की फ़सल थी, हर कोई साथ था, काम खत्म होते ही, सब चेहरे बदल गए। मोहब्बत को तौलते हैं वो बंदे ज़माने वाले, नफ़ा-नुक़सान की नज़र से देखते हैं खामोश क़िस्से। ज़ख़्म वही देते हैं, जो हँस के थाम लेते हैं हाथ, मोहब्बत की क़ीमत कभी नहीं समझ पाते साथ। रिश्तों की दुकान लगी है, इंसानियत कहीं खो गई, सुकून की तलाश में, खुद से दूर हो गया । चुप्पी को सँवारो अपनी सबसे बड़ी ताक़त बना, हर शोर में छुपा है कोई ग़म, कोई कहानी अधूरी। खुली किताब न बनो, हर किसी के लिए यहाँ, इस अंधेरे सफ़र में, सिर्फ़ वो जलते हैं जो समझें। — ✍️ आशुतोष पाणिग्राही।

🌟 हौसलों की उड़ान 🌟

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सोच के देखो !

नफरत का यह सिलसिला, कब तक चलता रहेगा? धरम के नाम से हैवानियत, कब तक यूँ ही चलेगा? ताक़त के गुरुर में मज़हब को, नफरत का जरिया बना दिया,  इंसानियत रंग दी खून में, और  धरती को जंग का मैदान बना दिया! इस मारने, मिटाने के लड़ाई मेँ, कुछ, अपनों को भुला बैठे हैं! धर्म का पट्टी बांध आँखों मेँ, कुछ, रिश्तों से ही ऐंठे हैं! खून की इस होली में, अपनी चलाई गोली में, मानवता ही मर जायेगा ! किस के लिए लड़े यह जंग, सब अपने ही तो मरेंगे,  और तू ने क्या सोचा हे, तू ही जिन्दा बच जायेगा!  सोच, उसके बाद का, क्या नज़ारा होगा!  लाशें ही लाशें हर तरफ, अपनों का बिखरा होगा!  एक चंडाशोक था संसार में,  उसे तो मुक्ति मिल गयी।  मिटा दिया होगा जब संसार, तुम्हे रास्ता कौन दिखायेगा! जिन्दा रह भी गया तो सोच, अकेले धरती पे क्या करेगा!